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बीए सेमेस्टर-3 हिन्दी गद्य

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2022
पृष्ठ :180
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2645
आईएसबीएन :0

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बीए सेमेस्टर-3 हिन्दी गद्य : सरल प्रश्नोत्तर

प्रश्न- 'झाँसी की रानी' उपन्यास में रानी लक्ष्मीबाई के चरित्र पर प्रकाश डालिये।

उत्तर-

भूमिका - इस ऐतिहासिक उपन्यास का सम्पूर्ण ढाँचा शुद्ध एवं ऐतिहासिक तथ्यों पर आधारित है। इस उपन्यास का चित्रपट देशव्यापी और विस्तृत है। झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई स्वराज्य के लिये ही लड़ी थीं यह अब निर्विवाद है। उसके हृदय में बाल्यकाल से ही पराधीनता के प्रति विद्रोह की भावना थी और उपयुक्त अवसर पाकर सन् 1857 में उन्होंने स्वतन्त्रता प्राप्ति के लिये काफी प्रयत्न किया। उनकी लड़ाई विवशता की न थी, वरन् स्वेच्छा से की गयी स्वतन्त्रता की लड़ाई थी। उनका प्रयत्न एक तरह से उस देशव्यापी प्रयत्न का प्रारम्भिक रूप था जिसकी परिणति गाँधी जी के प्रयत्नों से सन् 1947 में हुई। महारानी लक्ष्मीबाई का जीवनवृत्त इतिहास की ज्वलन्त और मनोहारिणी घटना है। परतन्त्रता, दासता की बेड़ी को तोड़ने व स्वतन्त्रता प्राप्ति के लिये उन्होंने अतुलनीय शौर्य और साहस का प्रदर्शन किया।

ज्वलन्त चरित्र - बाजीराव पेशवा द्वितीय के कृपापात्र मोरोपन्त की पुत्री तथा गंगाधर राव की पनि लक्ष्मीबाई में आद्यान्त भारतीय वीरांगनाओं के चरित्र का ज्वलन्त उदाहरण प्राप्त हुआ है। उसमें नारी सुलभ कोमलता और पुरुषोचित पराक्रम का रूप पूरी तरह दिखाई पड़ता है। कुश्ती, अश्वारोहण, तलवार चलाना इत्यादि कार्यों में उसकी बाल्यकाल से रुचि रही है। झाँसी के राजा गंगाधर राव से भी विवाह बाद वह बिठूर की आदतों को बनाये रखती है तथा मान और मर्यादा पर किसी भी प्रकार से आँच नहीं आने देती है। वह राज्य कार्यों में हाथ बँटाती है। उसकी महत्ता और गुणवत्ता से प्रभावित होकर राजा गंगाधर राव मेजर ऐलिस से कहते हैं- "हमारी रानी स्त्री जरूर है परन्तु इसमें ऐसे गुण हैं कि संसार के बड़े-बड़े मर्द इसके पैरों की धूल अपने माथे चढ़ायेंगे।" पति गंगाधर राव के मरणोपरान्त अट्ठारह वर्ष की अवस्था में विधवा होकर वह झाँसी का राज कार्य भार सम्भालती है। उस समय अंग्रेजों की लोलुप दृष्टि झाँसी पर लगी थी। अतः उसे स्वाधीन बनाये रखने, अंग्रेजों को भारत से बाहर निकालने के उद्देश्य से वह तांत्या टोपे और नाना के सहयोग से देश की वास्तविक स्थिति से अवगत होती है। अंग्रेजों के विरुद्ध जनमत तैयार कर शक्ति संगठन करती है। जनता और उसके शक्ति के प्रति आस्थावान वह एक-एक नागरिक को जागृत कर उसकी सहायता से देश को स्वतन्त्र बनाना चाहती है, स्वराज्य स्थापित करना चाहती है। उसकी समझ से "जनता असली शक्ति है।"

1. क्रान्ति की समर्थिका — किसी भी स्थिति - परिस्थिति में अनाचार और अत्याचार को प्रश्रय देना वह उचित नहीं समझती है। कारण वह जानती है। अनाचार और अत्याचार को प्रोत्साहन एक बार मिला कि वह बार-बार सिर उठाता है। अपने इन्हीं गुणों की बदौलत वह अपने सिपाहियों और सरदारों को खजाने और धन को लूटने से रोकती है, झाँसी में अंग्रेजों के हत्याकाण्ड को रोकती है, उसका विरोध अंग्रेज जाति या व्यक्ति से नहीं उनकी धूर्ततापूर्ण नीति से है। यही कारण है कि सिपाही विद्रोह के समय वह गार्डन की याचना पर उनके परिवार को अपने महल में आश्रय देती है और सुन्दर को मना करती है और कहती है- "हमारी लड़ाई अंग्रेज पुरुषों से है, उनके बाल-बच्चों से नहीं।" भारतीय सिपाही जब अंग्रेजों के किले को घेर लेते हैं और अंग्रेजों के भूखों मरने की नौबत आ जाती है, वह (रानी) उनकी याचना पर द्रवित होकर गुप्त मार्ग से काशी, सुन्दर, मुन्दर द्वारा उनके पास किले में भोजन भिजवाती है। भूखे विपत्ति में पड़े अंग्रेजों की सहायता करना, उनकी रक्षा करना वह अपना कर्तव्य धर्म मानती है।

2. दुर्बलता का कोई स्थान नहीं - उसके जीवन में दुर्बलता का कोई स्थान नहीं है। झूठी भावुकता, भावोत्तेजना से वह दूर रहती है। कर्त्तव्य पथ पर अपना पग आगे बढ़ाती है। उसके जीवन में आवेश, उत्तेजना के क्षण यदि आये भी हैं (झाँसी राज्य अपहरण की घोषणा के अवसर पर उनके मुख से निकले शब्द - "मैं झाँसी नहीं दूँगी।" भावोत्तेजना के ही हैं)। चिन्तन मनन की उनमें क्षमता है। अत: खूब - सोच समझ कर ही वह व्यवस्थित रूप में एक योजना के अनुसार कोई कदम उठाना चाहती है और उठाती भी है। वह धूर्त अंग्रेज जाति का मुकाबला चाणक्य नीति से करने का संकल्प करती है। वह भारत को स्वतन्त्र बनाने के लिए कटिबद्ध है। उसका एक मात्र लक्ष्य स्वराज्य स्थापना के लिए प्रयत्न करना है। अतः राज्य अपहरण की घोषणा से उत्तेजित दीवान जवाहर सिंह, रघुनाथ सिंह आदि को वह समझाती है- "अधिक भरी तैयारी में कुछ भी नहीं किया जाना चाहिये, अवसर आने पर ही तलवार म्यान से बाहर निकले। छोटी-छोटी बात पर न खिंच जावे।" वह पुन: किसी सन्दर्भ में कहती है- "जनता हमारे साथ है। एक दिन आयेगा जब इसी जनता के आगे होकर मैं स्वराज्य की पताका फहराऊँगी।" वह स्वयं को झाँसी तक सीमित नहीं मानती है। उसकी कल्पना और स्वप्न महान हैं।

3. उपेक्षित भावना का न होना - किसी भी व्यक्ति चाहे छोटा हो या बड़ा, को वह उपेक्षित नहीं समझती। विवाह की समाप्ति के बाद नर न्यौछावर के अवसर पर पति गंगाधर राव द्वारा आनन्दराय, जागीरदार की, की गयी उपेक्षा उन्हें अच्छी नहीं लगती। अतः वह सुन्दर के कहने पर कि छोटे-छोटे से आदमियों का महाराज कहाँ तक लिहाज करें, कहती है- "जिन्हें तुम छोटा आदमी कहती हो, आधार तो हमारे वे ही हैं।" विधवा हो जाने पर जनमत तैयार करने जनता को जागृत. करने के प्रसंग में वह रघुनाथ सिंह, जवाहर सिंह से कहती है- "छोटी से छोटी जाति के पुरुष या स्त्री को, गरीब से गरीब मजदूर या किसान को कदापि छोटा न समझो। "

4. नारी को पुरषों की प्रेरणा शक्ति समझना - वह नारी को पुरुषों की प्रेरणा शक्ति समझती है। अत: चाहती है कि उसमें नारी सौन्दर्य के साथ शौर्य भी हो। वह अपने सहयोगियों से कहती है - "पुरुषों को पुरुषार्थ सिखलाने के लिये स्त्रियों को मलखंभ, कुश्ती इत्यादि सीखना ही चाहिये। खूब तेज दौड़ना भी नाचने गाने से स्त्रियों का स्वास्थ्य सुधरता है। परन्तु अपने को मोहक बना लेना ही तो स्त्री का समस्त कर्त्तव्य नहीं।" वह चाहती है कि सभी उसे (शरीर को ) प्रबल और पुष्ट बनाये – "फूलों से सम्बन्ध बनाये रखो, परन्तु मिट्टी से सम्बन्ध तोड़कर नहीं।” चारित्रिक दृढ़ता को वह नारी के लिये अत्यन्त आवश्यक और उपयोगी मानती हैं। अतः बाला गुरु से शिक्षा ग्रहण करने में संकोच करती अपनी सहयोगिनियों से कहती हैं- "बालागुरु देवता हैं, और न भी हो तो तुमको क्या डर, स्त्रियाँ दृढ़ता का कवच पहने तो फिर संसार में ऐसा पुरुष कोई हो ही नहीं सकता जो उनको लूट ले। "

5. सभी जातियों के प्रति प्रेम की भावना - वह जाति वर्ग की संकीर्ण परिधि को विनष्ट कर सभी जातियों की स्त्रियों से मुक्त रूप से हृदय खोलकर मिलती हैं। प्यार और स्नेह करती हैं। दासी रूप में मिली नारियाँ, सुन्दर, मुन्दर, काशी को अपनी सहेली बनाकर रखती हैं। अपनी इसी उदारता की बदौलत वह जनता के हृदय पर अधिकार प्राप्त कर लेती हैं।

6. उसकी रुचि अध्यात्म की ओर - शारीरिक बल बुद्धि के साथ-साथ उसकी रुचि अध्यात्म की ओर भी हैं। बचे हुये समय में वह धार्मिक ग्रन्थों का थोड़ा-सा पर नियमपूर्वक अध्ययन करती हैं। श्रीमद्भागवत गीता पर उसकी अटूट श्रद्धा है। उन्हीं को आधार मानकर वह उसे अपने जीनव में उतारने की कोशिश करती है। धर्म को प्रधान मानती हैं, लेकिन कर्म के फल को नहीं। बाबा कहते हैं- "वह अस्त हुई, वह अमर हो गई।"

7. देश-प्रेम, स्वाधीनता प्राप्ति की भावना –  देश-प्रेम, स्वाधीनता प्राप्ति, स्वराज्य की स्थापना ही उसके जीवन का एक मात्र लक्ष्य अथवा उद्देश्य बन गया। न तो उसमें वैभव विलास, न आभूषण प्रियता और न ही प्रदर्शन की भूख ही है। रानी कहती है- "युद्ध वास्तव में है ही किस निमित्त अपने जीवन और धर्म की रक्षा के लिए, अपनी संस्कृति और कला को बचाने के लिए; नहीं तो युद्ध एक व्यर्थ का रक्तपात ही है। यह खेल जल्दी हो जाए और फिर उस खेल को ऐसा खेलो कि अंग्रेजों के छक्के छूट जाएँ और यह देश उनकी फाँस से मुक्त हो जाए।"

8. सौन्दर्य, शौर्य की प्रधानता — उसमें सौन्दर्य, शौर्य भी है। वह त्यागी है। अपने जीवन में सांसारिकता और आध्यात्मिकता दोनों को महत्त्व देती है। उसका दृष्टिकोण मानवतावादी है। वर्गगत संकीर्णता को वह अपने जीवन में कभी प्रश्रय नहीं देती। वीर पुरुषों, व वीरता के सभी तत्त्व उसमें विराजमान हैं। उसके अन्दर आत्मत्याग, पुरुषार्थ, साहस, धैर्य, स्वावलम्बन, स्वाभिमान, देश-प्रेम, परोपकार, धर्मप्रियता विद्यमान है।

9. कला और संस्कृति के प्रति अनुराग - रानी में कला और संस्कृति के प्रति गहरा लगाव है पर समय की आवश्यकता को देख कर वह महसूस करती है कि देश में सुख-समृद्धि की स्थापना विदेशी अंग्रेजों की देश की सीमा से बाहर कर देने से ही हो सकती है। अतः वह अपने जीवन को शुचिता के तेज से तपाकर वीरता की वेदी पर न्यौछावर कर देती है। उसका चरित्र भारतीय राष्ट्र निर्माण की अमर निधि है।

निष्कर्ष - संक्षेप में, उसमें सौन्दर्य और वीरता की प्रधानता है। वह कर्त्तव्यपरायण, धीर, गम्भीर, दृढ़, संयमी, अनुशासनप्रिय, न्यायप्रिय, सरल और दृढ़निश्चयी है। वह नारी जाति के उत्थान की आकांक्षिणी है और स्वाधीनता संग्राम में नारी-पुरुष दोनों के सहयोग को आवश्यक समझती है। राष्ट्र भावना, देश-प्रेम उसके अन्दर कूट-कूटकर भरा हुआ है।

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    अनुक्रम

  1. प्रश्न- आदिकाल के हिन्दी गद्य साहित्य का परिचय दीजिए।
  2. प्रश्न- हिन्दी की विधाओं का उल्लेख करते हुए सभी विधाओं पर संक्षिप्त रूप से प्रकाश डालिए।
  3. प्रश्न- हिन्दी नाटक के उद्भव एवं विकास को स्पष्ट कीजिए।
  4. प्रश्न- कहानी साहित्य के उद्भव एवं विकास को स्पष्ट कीजिए।
  5. प्रश्न- हिन्दी निबन्ध के विकास पर विकास यात्रा पर प्रकाश डालिए।
  6. प्रश्न- स्वातंत्र्योत्तर हिन्दी आलोचना पर प्रकाश डालिए।
  7. प्रश्न- 'आत्मकथा' की चार विशेषतायें लिखिये।
  8. प्रश्न- लघु कथा पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  9. प्रश्न- हिन्दी गद्य की पाँच नवीन विधाओं के नाम लिखकर उनका अति संक्षिप्त परिचय दीजिए।
  10. प्रश्न- आख्यायिका एवं कथा पर टिप्पणी लिखिये।
  11. प्रश्न- सम्पादकीय लेखन का वर्णन कीजिए।
  12. प्रश्न- ब्लॉग का अर्थ बताइये।
  13. प्रश्न- रेडियो रूपक एवं पटकथा लेखन पर टिप्पणी लिखिये।
  14. प्रश्न- हिन्दी कहानी के स्वरूप एवं विकास पर प्रकाश डालिये।
  15. प्रश्न- प्रेमचंद पूर्व हिन्दी कहानी की स्थिति पर प्रकाश डालिए।
  16. प्रश्न- नई कहानी आन्दोलन का वर्णन कीजिये।
  17. प्रश्न- हिन्दी उपन्यास के उद्भव एवं विकास पर एक संक्षिप्त निबन्ध लिखिए।
  18. प्रश्न- उपन्यास और कहानी में क्या अन्तर है ? स्पष्ट कीजिए ?
  19. प्रश्न- हिन्दी एकांकी के विकास में रामकुमार वर्मा के योगदान पर संक्षिप्त विचार प्रस्तुत कीजिए।
  20. प्रश्न- हिन्दी एकांकी का विकास बताते हुए हिन्दी के प्रमुख एकांकीकारों का परिचय दीजिए।
  21. प्रश्न- सिद्ध कीजिए कि डा. रामकुमार वर्मा आधुनिक एकांकी के जन्मदाता हैं।
  22. प्रश्न- हिन्दी आलोचना के उद्भव और विकास पर प्रकाश डालिए।
  23. प्रश्न- हिन्दी आलोचना के क्षेत्र में आचार्य रामचन्द्र शुक्ल का योगदान बताइये।
  24. प्रश्न- निबन्ध साहित्य पर एक निबन्ध लिखिए।
  25. प्रश्न- 'आवारा मसीहा' के आधार पर जीवनी और संस्मरण का अन्तर स्पष्ट कीजिए, साथ ही उनकी मूलभूत विशेषताओं की भी विवेचना कीजिए।
  26. प्रश्न- 'रिपोर्ताज' का आशय स्पष्ट कीजिए।
  27. प्रश्न- आत्मकथा और जीवनी में अन्तर बताइये।
  28. प्रश्न- हिन्दी की हास्य-व्यंग्य विधा से आप क्या समझते हैं ? इसके विकास का विवेचन कीजिए।
  29. प्रश्न- कहानी के उद्भव और विकास पर क्रमिक प्रकाश डालिए।
  30. प्रश्न- सचेतन कहानी आंदोलन पर प्रकाश डालिए।
  31. प्रश्न- जनवादी कहानी आंदोलन के बारे में आप क्या जानते हैं ?
  32. प्रश्न- समांतर कहानी आंदोलन के मुख्य आग्रह क्या थे ?
  33. प्रश्न- हिन्दी डायरी लेखन पर प्रकाश डालिए।
  34. प्रश्न- यात्रा सहित्य की विशेषतायें बताइये।
  35. अध्याय - 3 : झाँसी की रानी - वृन्दावनलाल वर्मा (व्याख्या भाग )
  36. प्रश्न- उपन्यासकार वृन्दावनलाल वर्मा के जीवन वृत्त एवं कृतित्व पर प्रकाश डालिए।
  37. प्रश्न- झाँसी की रानी उपन्यास में वर्मा जी ने सामाजिक चेतना को जगाने का पूरा प्रयास किया है। इस कथन को समझाइये।
  38. प्रश्न- 'झाँसी की रानी' उपन्यास में रानी लक्ष्मीबाई के चरित्र पर प्रकाश डालिये।
  39. प्रश्न- झाँसी की रानी के सन्दर्भ में मुख्य पुरुष पात्रों की चारित्रिक विशेषताएँ बताइये।
  40. प्रश्न- 'झाँसी की रानी' उपन्यास के पात्र खुदाबख्श और गुलाम गौस खाँ के चरित्र की तुलना करते हुए बताईये कि आपको इन दोनों पात्रों में से किसने अधिक प्रभावित किया और क्यों?
  41. प्रश्न- पेशवा बाजीराव द्वितीय का चरित्र-चित्रण कीजिए।
  42. अध्याय - 4 : पंच परमेश्वर - प्रेमचन्द (व्याख्या भाग)
  43. प्रश्न- 'पंच परमेश्वर' कहानी का सारांश लिखिए।
  44. प्रश्न- जुम्मन शेख और अलगू चौधरी की शिक्षा, योग्यता और मान-सम्मान की तुलना कीजिए।
  45. प्रश्न- “अपने उत्तरदायित्व का ज्ञान बहुधा हमारे संकुचित व्यवहारों का सुधारक होता है।" इस कथन का आशय स्पष्ट कीजिए।
  46. अध्याय - 5 : पाजेब - जैनेन्द्र (व्याख्या भाग)
  47. प्रश्न- श्री जैनेन्द्र जैन द्वारा रचित कहानी 'पाजेब' का सारांश अपने शब्दों में लिखिये।
  48. प्रश्न- 'पाजेब' कहानी के उद्देश्य को स्पष्ट कीजिए।
  49. प्रश्न- 'पाजेब' कहानी की भाषा एवं शैली की विवेचना कीजिए।
  50. अध्याय - 6 : गैंग्रीन - अज्ञेय (व्याख्या भाग)
  51. प्रश्न- कहानी कला के तत्त्वों के आधार पर अज्ञेय द्वारा रचित 'गैंग्रीन' कहानी का विवेचन कीजिए।
  52. प्रश्न- कहानी 'गैंग्रीन' में अज्ञेय जी मालती की घुटन को किस प्रकार चित्रित करते हैं?
  53. प्रश्न- अज्ञेय द्वारा रचित कहानी 'गैंग्रीन' की भाषा पर प्रकाश डालिए।
  54. अध्याय - 7 : परदा - यशपाल (व्याख्या भाग)
  55. प्रश्न- कहानी कला की दृष्टि से 'परदा' कहानी की समीक्षा कीजिए।
  56. प्रश्न- 'परदा' कहानी का खान किस वर्ग विशेष का प्रतिनिधित्व करता है, तर्क सहित इस कथन की पुष्टि कीजिये।
  57. प्रश्न- यशपाल जी के व्यक्तित्व और कृतित्व पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिये।
  58. अध्याय - 8 : तीसरी कसम - फणीश्वरनाथ रेणु (व्याख्या भाग)
  59. प्रश्न- फणीश्वरनाथ रेणु की कहानी कला की समीक्षा कीजिए।
  60. प्रश्न- रेणु की 'तीसरी कसम' कहानी के विशेष अपने मन्तव्य प्रकट कीजिए।
  61. प्रश्न- हीरामन के चरित्र पर प्रकाश डालिए।
  62. प्रश्न- हीराबाई का चरित्र चित्रण कीजिए।
  63. प्रश्न- 'तीसरी कसम' कहानी की भाषा-शैली पर प्रकाश डालिए।
  64. प्रश्न- 'तीसरी कसम' उर्फ मारे गये गुलफाम कहानी के उद्देश्य पर प्रकाश डालिए।
  65. प्रश्न- फणीश्वरनाथ रेणु का संक्षिप्त जीवन परिचय लिखिए।
  66. प्रश्न- फणीश्वरनाथ रेणु जी के रचनाओं का वर्णन कीजिए।
  67. प्रश्न- हीराबाई को हीरामन का कौन-सा गीत सबसे अच्छा लगता है ?
  68. प्रश्न- हीरामन की चारित्रिक विशेषताएँ बताइए?
  69. अध्याय - 9 : पिता - ज्ञान रंजन (व्याख्या भाग)
  70. प्रश्न- कहानीकार ज्ञान रंजन की कहानी कला पर प्रकाश डालिए।
  71. प्रश्न- कहानी 'पिता' पारिवारिक समस्या प्रधान कहानी है? स्पष्ट कीजिए।
  72. प्रश्न- कहानी 'पिता' में लेखक वातावरण की सृष्टि कैसे करता है?
  73. अध्याय - 10 : ध्रुवस्वामिनी - जयशंकर प्रसाद (व्याख्या भाग)
  74. प्रश्न- ध्रुवस्वामिनी नाटक का कथासार अपने शब्दों में व्यक्त कीजिए।
  75. प्रश्न- नाटक के तत्वों के आधार पर ध्रुवस्वामिनी नाटक की समीक्षा कीजिए।
  76. प्रश्न- ध्रुवस्वामिनी नाटक के आधार पर चन्द्रगुप्त के चरित्र की विशेषतायें बताइए।
  77. प्रश्न- 'ध्रुवस्वामिनी नाटक में इतिहास और कल्पना का सुन्दर सामंजस्य हुआ है। इस कथन की समीक्षा कीजिए।
  78. प्रश्न- ऐतिहासिक दृष्टि से ध्रुवस्वामिनी की कथावस्तु पर प्रकाश डालिए।
  79. प्रश्न- 'ध्रुवस्वामिनी' नाटक का उद्देश्य स्पष्ट कीजिए।
  80. प्रश्न- 'धुवस्वामिनी' नाटक के अन्तर्द्वन्द्व किस रूप में सामने आया है ?
  81. प्रश्न- क्या ध्रुवस्वामिनी एक प्रसादान्त नाटक है ?
  82. प्रश्न- 'ध्रुवस्वामिनी' में प्रयुक्त किसी 'गीत' पर अपने विचार प्रकट कीजिए।
  83. प्रश्न- प्रसाद के नाटक 'ध्रुवस्वामिनी' की भाषा सम्बन्धी विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
  84. अध्याय - 11 : दीपदान - डॉ. राजकुमार वर्मा (व्याख्या भाग)
  85. प्रश्न- " अपने जीवन का दीप मैंने रक्त की धारा पर तैरा दिया है।" 'दीपदान' एकांकी में पन्ना धाय के इस कथन के आधार पर उसका चरित्र-चित्रण कीजिए।
  86. प्रश्न- 'दीपदान' एकांकी का कथासार लिखिए।
  87. प्रश्न- 'दीपदान' एकांकी का उद्देश्य लिखिए।
  88. प्रश्न- "बनवीर की महत्त्वाकांक्षा ने उसे हत्यारा बनवीर बना दिया। " " दीपदान' एकांकी के आधार पर इस कथन के आलोक में बनवीर का चरित्र-चित्रण कीजिए।
  89. अध्याय - 12 : लक्ष्मी का स्वागत - उपेन्द्रनाथ अश्क (व्याख्या भाग)
  90. प्रश्न- 'लक्ष्मी का स्वागत' एकांकी की कथावस्तु लिखिए।
  91. प्रश्न- प्रस्तुत एकांकी के शीर्षक की उपयुक्तता बताइए।
  92. प्रश्न- 'लक्ष्मी का स्वागत' एकांकी के एकमात्र स्त्री पात्र रौशन की माँ का चरित्रांकन कीजिए।
  93. अध्याय - 13 : भारतवर्षोन्नति कैसे हो सकती है - भारतेन्दु हरिश्चन्द्र (व्याख्या भाग)
  94. प्रश्न- भारतवर्षोन्नति कैसे हो सकती है?' निबन्ध का सारांश लिखिए।
  95. प्रश्न- लेखक ने "हमारे हिन्दुस्तानी लोग तो रेल की गाड़ी हैं।" वाक्य क्यों कहा?
  96. प्रश्न- "परदेशी वस्तु और परदेशी भाषा का भरोसा मत रखो।" कथन से क्या तात्पर्य है?
  97. अध्याय - 14 : मित्रता - आचार्य रामचन्द्र शुक्ल (व्याख्या भाग)
  98. प्रश्न- 'मित्रता' पाठ का सारांश लिखिए।
  99. प्रश्न- सच्चे मित्र की विशेषताएँ लिखिए।
  100. प्रश्न- आचार्य रामचन्द्र शुक्ल की भाषा-शैली पर संक्षिप्त टिप्पणी कीजिए।
  101. अध्याय - 15 : अशोक के फूल - हजारी प्रसाद द्विवेदी (व्याख्या भाग)
  102. प्रश्न- आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी के निबंध 'अशोक के फूल' के नाम की सार्थकता पर विचार करते हुए उसका सार लिखिए तथा उसके द्वारा दिये गये सन्देश पर विचार कीजिए।
  103. प्रश्न- आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी के निबंध 'अशोक के फूल' के आधार पर उनकी निबन्ध-शैली की समीक्षा कीजिए।
  104. अध्याय - 16 : उत्तरा फाल्गुनी के आसपास - कुबेरनाथ राय (व्याख्या भाग)
  105. प्रश्न- निबन्धकार कुबेरनाथ राय का संक्षिप्त जीवन और साहित्य का परिचय देते हुए साहित्य में स्थान निर्धारित कीजिए।
  106. प्रश्न- कुबेरनाथ राय द्वारा रचित 'उत्तरा फाल्गुनी के आस-पास' का सारांश अपने शब्दों में लिखिए।
  107. प्रश्न- कुबेरनाथ राय के निबन्धों की भाषा लिखिए।
  108. प्रश्न- उत्तरा फाल्गुनी से लेखक का आशय क्या है?
  109. अध्याय - 17 : तुम चन्दन हम पानी - डॉ. विद्यानिवास मिश्र (व्याख्या भाग)
  110. प्रश्न- विद्यानिवास मिश्र की निबन्ध शैली का विश्लेषण कीजिए।
  111. प्रश्न- "विद्यानिवास मिश्र के निबन्ध उनके स्वच्छ व्यक्तित्व की महत्वपूर्ण अभिव्यक्ति हैं।" उपरोक्त कथन के संदर्भ में अपने विचार प्रकट कीजिए।
  112. प्रश्न- पं. विद्यानिवास मिश्र के निबन्धों में प्रयुक्त भाषा की विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
  113. अध्याय - 18 : रेखाचित्र (गिल्लू) - महादेवी वर्मा (व्याख्या भाग)
  114. प्रश्न- 'गिल्लू' नामक रेखाचित्र का सारांश लिखिए।
  115. प्रश्न- सोनजूही में लगी पीली कली देखकर लेखिका के मन में किन विचारों ने जन्म लिया?
  116. प्रश्न- गिल्लू के जाने के बाद वातावरण में क्या परिवर्तन हुए?
  117. अध्याय - 19 : संस्मरण (तीन बरस का साथी) - रामविलास शर्मा (व्याख्या भाग)
  118. प्रश्न- संस्मरण के तत्त्वों के आधार पर 'तीस बरस का साथी : रामविलास शर्मा' संस्मरण की समीक्षा कीजिए।
  119. प्रश्न- 'तीस बरस का साथी' संस्मरण के आधार पर रामविलास शर्मा की विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
  120. अध्याय - 20 : जीवनी अंश (आवारा मसीहा ) - विष्णु प्रभाकर (व्याख्या भाग)
  121. प्रश्न- विष्णु प्रभाकर की कृति आवारा मसीहा में जनसाधारण की भाषा का प्रयोग किया गया है। इस कथन की समीक्षा कीजिए।
  122. प्रश्न- 'आवारा मसीहा' अथवा 'पथ के साथी' कृति का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
  123. प्रश्न- विष्णु प्रभाकर के 'आवारा मसीहा' का नायक कौन है ? उसका चरित्र-चित्रण कीजिए।
  124. प्रश्न- 'आवारा मसीहा' में समाज से सम्बन्धित समस्याओं को संक्षेप में लिखिए।
  125. प्रश्न- 'आवारा मसीहा' में बंगाली समाज का चित्रण किस प्रकार किया गया है ? स्पष्ट कीजिए।
  126. प्रश्न- 'आवारा मसीहा' के रचनाकार का वैशिष्ट्य वर्णित कीजिये।
  127. अध्याय - 21 : रिपोर्ताज (मानुष बने रहो ) - फणीश्वरनाथ 'रेणु' (व्याख्या भाग)
  128. प्रश्न- फणीश्वरनाथ 'रेणु' कृत 'मानुष बने रहो' रिपोर्ताज का सारांश लिखिए।
  129. प्रश्न- 'मानुष बने रहो' रिपोर्ताज में रेणु जी किस समाज की कल्पना करते हैं?
  130. प्रश्न- 'मानुष बने रहो' रिपोर्ताज में लेखक रेणु जी ने 'मानुष बने रहो' की क्या परिभाषा दी है?
  131. अध्याय - 22 : व्यंग्य (भोलाराम का जीव) - हरिशंकर परसाई (व्याख्या भाग)
  132. प्रश्न- प्रसिद्ध व्यंग्यकार हरिशंकर परसाई द्वारा रचित व्यंग्य ' भोलाराम का जीव' का सारांश लिखिए।
  133. प्रश्न- 'भोलाराम का जीव' कहानी के उद्देश्य पर प्रकाश डालिए।
  134. प्रश्न- हरिशंकर परसाई की रचनाधर्मिता और व्यंग्य के स्वरूप पर प्रकाश डालिए।
  135. अध्याय - 23 : यात्रा वृत्तांत (त्रेनम की ओर) - राहुल सांकृत्यायन (व्याख्या भाग)
  136. प्रश्न- यात्रावृत्त लेखन कला के तत्त्वों के आधार पर 'त्रेनम की ओर' यात्रावृत्त की समीक्षा कीजिए।
  137. प्रश्न- राहुल सांकृत्यायन के यात्रा वृत्तान्तों के महत्व का उल्लेख कीजिए।
  138. अध्याय - 24 : डायरी (एक लेखक की डायरी) - मुक्तिबोध (व्याख्या भाग)
  139. प्रश्न- गजानन माधव मुक्तिबोध द्वारा रचित 'एक साहित्यिक की डायरी' कृति के अंश 'तीसरा क्षण' की समीक्षा कीजिए।
  140. अध्याय - 25 : इण्टरव्यू (मैं इनसे मिला - श्री सूर्यकान्त त्रिपाठी) - पद्म सिंह शर्मा 'कमलेश' (व्याख्या भाग)
  141. प्रश्न- "मैं इनसे मिला" इंटरव्यू का सारांश लिखिए।
  142. प्रश्न- पद्मसिंह शर्मा कमलेश की भाषा-शैली पर प्रकाश डालिए।
  143. अध्याय - 26 : आत्मकथा (जूठन) - ओमप्रकाश वाल्मीकि (व्याख्या भाग)
  144. प्रश्न- ओमप्रकाश वाल्मीकि के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर संक्षेप में प्रकाश डालते हुए 'जूठन' शीर्षक आत्मकथा की समीक्षा कीजिए।
  145. प्रश्न- आत्मकथा 'जूठन' का सारांश अपने शब्दों में लिखिए।
  146. प्रश्न- दलित साहित्य क्या है? ओमप्रकाश वाल्मीकि के साहित्य के परिप्रेक्ष्य में स्पष्ट कीजिए।
  147. प्रश्न- 'जूठन' आत्मकथा की पृष्ठभूमि पर प्रकाश डालिए।
  148. प्रश्न- 'जूठन' आत्मकथा की भाषिक-योजना पर प्रकाश डालिए।

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